बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथा

Vaikuntha-Chaturdashi-Ki-Katha-Colorsofbhakri

हमारे सनातन धर्म में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष  की चतुर्थी की चतुर्दशी तिथि होती है उसे वैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है वैकुंठ चतुर्दशी  
का विशेष महत्त्व हमारे धर्म ग्रंथों तथा पुराणों में  बताया हुआ है कि इस वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु नारायण एवं भगवान शिव का मिलन होता  है इसे हरिहर मिलन के रूप में भी माना जाता है। इस दिन भगवान वैकुंठनाथ का विशेष पूजन-अर्चन किया जाता है।

वैकुंठ चतुर्दशी का शास्त्रों  में विशेष महत्त्व माना गया है हमारे पुराणों तथा  धर्म ग्रंथों में लिखा हुआ है कि भगवान शिव ने इसी दिन भगवान विष्णु को वरदान रूप में सुदर्शन चक्र  प्रदान किया था इस दिन भगवान शिव और श्री हरि विष्णु दोनों ही एक का एक रूप में रहते हैं हमारे धर्म  ग्रंथों में लिखा हुआ है कि यदि भी मनुष्य इस दिन  भगवान श्रीहरि की विशेष पूजा करते हैं या फिर वैकुंठ  चतुर्दशी का व्रत रखते हैं उन्हें इस संसार के समस्त दुखों से मुक्ति मिलती है और धर्म अर्थ काम और मोक्ष  के साथ-साथ उन्हें वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु चातुर्मास तक सृष्टि का पूरा कार्यभार भगवान शिवजी को देखकर के विश्राम  करते हैं इस दिन भगवान शिव और श्री हरि विष्णु दोनों ही एक रूप में रहते हैं हमारे पुराणों में लिखा हुआ है कि वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु की 1000 कमलों से पूजा करने वाले व्यक्ति  और उसके परिवार को वैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। वहीं इस दिन श्राद्ध और तर्पण का भी विशेष महत्त्व है और इसी दिन महाभारत के युद्ध के बाद उससे मारे गए लोगों का भगवान श्री कृष्ण श्राद्ध करवाया था। इसलिए उसे बैकुंठ चतुर्दशी भी कहा जाता है और जिन पितरों का महाभारत काल में पांडवों ने शोध किया था। तर्पण किया था वह कार्य वैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही संपन्न हुआ था और उन्हें समस्त पितरों को बैकुंठ लोक  की प्राप्ति हुई थी वैकुंठ चतुर्दशी का यह व्रत एवं वृक्षों की पारंपरिक एकता का प्रतीक माना जाता है।  

वैकुंठ चतुर्दशी की हमारे पुराणों में तीन प्रकार की कथाएँ मिलती है कहा  जाता है कि वैकुंठ चतुर्दशी की कथा का श्रवण करने से मनुष्य कई जन्मों के करोड़ों जन्मों के पाप तक्षण  नष्ट हो जाते हैं आज हम आपको बैकुंठ चतुर्दशी के दिव्य और ज्ञानमय की कथा सुनाने जा रहे हैं।

बोलिए  वैकुंठनाथ वजन की जय लक्ष्मी नारायण भगवान की जय श्री वृंदावन बिहारी लाल की जय।

पहली कथा एक समय की नाराजगी  पृथ्वी लोक से घूम कर के वैकुंठ धाम पहुँचते भगवान विष्णु ने आदरपूर्वक आसन पर बिठाया और प्रसन्न होकर  के नारदजी से उनके आने का कारण पूछते हैं नारद जी कहते हैं कि हे प्रभु आपने अपना नाम कृपा निधान रखा  है इससे आपके जो प्रिय भक्त वही तर जाते हैं जो सा  अपने नर-नारी है वह वंचित रह जाते हैं इसलिए आप मुझे  कोई ऐसा सरल मार्ग बताएँ जिससे सामान्य व्यक्ति भी आपकी भक्ति करके मोक्ष को प्राप्त कर सके। यह सुनकर के भगवान विष्णु बोले कि हे नारद सुनो ध्यान पूर्वक मेरी बात का श्रवण करो कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष  की जो चतुर्दशी तिथि होती है उसका नर-नारी विधिवत यदि पालन करेंगे व्रत करेंगे पूजा-अर्चना करेंगे और  श्रद्धाभक्ति से मेरी पूजा अर्चना करेंगे तो इस दिन उनके लिए स्वर्ग के द्वार शाखा खुले होंगे यह ऐसे  भक्तों को वैकुंठ धाम की अवश्य ही प्राप्ति होगी  कि इसके बाद भगवान विष्णु अपने दोनों प्रिय दूतो जय और विजय को बुलाते हैं और उन्हें कहते हैं कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की जो चतुर्दशी तिथि  आए उस दिन स्वर्ग के द्वार खुला रखना जो भी भक्त इस दिन आए उन्हें अंदर आने से मत रोकना भगवान  विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भक्त मेरा थोड़ा सा नाम लेकर भी पूजन करेगा उसे बैकुंठ धाम अवश्य ही  प्राप्त हो जाएगा इसमें कोई भी संदेश नहीं है।

दूसरी कथा हमारे पुराणों में लिखा हुआ है कि एक समय भगवान विष्णु  देवाधिदेव महादेव का पूजन करने के लिए काशी नगरी पहुँचे वहाँ मणिकर्णिका घाट पर प्रभु ने स्नान किया और स्नान करने के बाद उन्होंने 1,000 कमल एकत्रित किए तथा स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान काशी विश्वनाथ  का पूजन करने का संकल्प किया मन में निश्चय कर ले  हुआ था कि आज में प्रभु का एक हजार कमल पुष्पों से पूजन कर लूंगा और अभिषेक के बाद जब पूजन करने लगे तो भगवान शिव जी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के  उद्देश से उनके जो 1, 000 कमल उन्होंने एकत्रित किए थे उनमें से एक कमल का पुष्प कम कर दिया भगवान श्री  हरि को पूजन की पूर्ति के लिए 1000 कमल पुष्प काशी विश्वनाथ को चढ़ाने थे एक पुष्प की कमी देख करके  उन्होंने सोचा कि मेरी आंखें भी धो कमल के ही समान है क्योंकि मुझे कमलनयन और पुंडरीकाक्ष कहा जाता  है ऐसा विचार करके भगवान विष्णु ने अपनी कमल समाधान आपको चढ़ाने के लिए तैयार हो गए और भगवान विष्णु जी  की इस आधा भक्ति से प्रसन्न होकर के देवाधिदेव काशी विश्वनाथ महादेव वहाँ पर प्रकट हो गए और बोले कि  है विष्णु तुम्हारी समान संसार में दूसरा कोई भी मेरा भक्त नहीं है आज की यह कार्तिक माह के शुक्ल  पक्ष की चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी और इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आप का पूजन करेगा उसे  बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी भगवान शिव ने इसी दिन वैकुंठ चतुर्दशी को करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु को प्रदान किया शिवजी तथा विष्णु जी कहते हैं कि इस दिन स्वर्ग  के द्वार खुले रहेंगे इस मृत्यु लोक में रहने वाला कोई भी व्यक्ति इस व्रत को करेगा तो वह स्थान अपना वैकुंठधाम में सुनिश्चित कर लेगा।


वैकुंठ चतुर्दशी की जो तीसरी कथा आती है उसमें लिखा हुआ है कि धनेश्वर  नामक एक ब्राह्मण था जो बहुत बुरे-बुरे काम किया करता था उसके ऊपर कई प्रकार के पाप थे एक कुंडेश्वर  ब्राह्मण गोदावरी नदी में स्नान करने के लिए गया उस दिन कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की वैकुंठ चतुर्दशी  तिथि कई भक्तजन उस दिन पूजा अर्चना करके गोदावरी नदी के तट पर आए और उस भीड़ में धनेश्वर ने भी उन सभी के  साथ स्नान करने जो जा रहे थे उनका अचानक स्पर्श हो गया और इसे धनेश्वर को बहुत पुण्य की प्राप्ति  हुई जब अब धनेश्वर की मृत्यु हुई कि उसने पूरे जीवन कोई भी पुण्य कर्म नहीं किया था केवल पाप कर्म  किया था केवल पुण्य इतना था कि जब वैकुंठ चतुर्दशी को भक्तजन स्नानकर के जा रहे थे तो उनसे स्पर्श हो  गया था जब धनेश्वर की मृत्यु हुई तब उसे यमराज लेकर आए और नर्क में उसे भेज दिया तब भगवान विष्णु ने  कहा कि यह बहुत पी है पर इसमें वैकुंठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी नदी में स्नान किया और श्रद्धालुओं के  पुण्यों के कारण इसे जो है पुण्य की प्राप्ति हो गई तथा इसके सारे पाप नष्ट हो गए हैं इसलिए उसे बैकुंठ  धाम की प्राप्ति होगी उसके पश्चात धनेश्वर ब्राह्मण को वैकुंठ लोक की प्राप्ति हो गई।

बोलिए बैकुंठ नाथ भगवान की जय लक्ष्मी नारायण भगवान की जय बैकुंठ नाथ भगवान की जय,
श्री वृंदावन बिहारी लाल की जय लक्ष्मी नारायण भगवान की जय गोपाल  कृष्ण भगवान की जय

धर्म की जय हो अधर्म का नाश हो  प्राणियों में सद्भावना हो
विश्व का कल्याण हो सनातन धर्म की जय हो गौ माता की जय हो
ओम नगर बस्ती की जय हो आज के आनंद की जय हो कल के आनंद की जय हो परसों  
आनंद की जय हो बरसो-बरसो की जय हो ओम नमः पार्वती पते हर-हर महादेव।

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