सावन सोमवार व्रत की कहानी – सोमवार व्रत कथा

Sawan Somvar Vrat Katha Colors of Bhakt

नमस्कार दोस्तों भोलेनाथ का प्रिय महीना सावन का महीना प्रारंभ हो चुका है आज हम आपके लिए सावन के महीने से शुरू किए जाने वाले  सोलह सोमवार के व्रत की कहानी लेकर आए हैं ।
एक समय की बात है अमरपुर नगर में एक अमीर साहूकार रहता था। उसके कोई संतान नहीं थी जिस कारण वह दुखी रहता था। संतान प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार व्रत कर शिवजी की पूजा करता था। संध्या के समय मंदिर में जाकर भगवान शिव के आगे घी का दीपक जलाता था। उसकी भक्ति देख मां पार्वती प्रसन्न हुईं और उन्होंने भगवान शिव से कहाँ, हे प्राणनाथ यह आपका सच्चा भक्त है कृपा कर इसकी इच्छा पूरी करें तब भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि पूर्व जन्म के कर्मों के कारण साहूकार की भाग्य में संतान नहीं है लेकिन माता पार्वती नहीं मानी तब भगवान शिव ने स्वप्न में उत्साह हुकार को दर्शन दिए और संतान प्राप्ति के वरदान के साथ यह भी बताया कि उसका पुत्र अल्पायु होगा और उसकी आयु मात्र 16 वर्ष  की होगी। यह सुनकर वह साहूकार प्रसन्न तो हुआ लेकिन चिंतित भी हुआ था। उसने यह सारी बात अपनी पत्नी को भी बताई पुत्र के अल्पायु होने की बात जानकर साहूकारनी भी बहुत दुखी हुई है लेकिन साहूकार ने अपने सोमवार के व्रत का नियम नहीं छोड़ा कुछ समय बाद साहूकार के घर एक पुत्र का जन्म हुआ।

जिसका नाम अमर रखा गया  जब अमर 11 साल का हुआ तो साहूकार ने उसे अपने मामा दीपचंद के साथ शिक्षा ग्रहण करने का शीघ्र भेज दिया साहूकार ने उन्हें रास्ते के लिए कुछ धन दिया और कहा जहां भी तुम रात्रि विश्राम के लिए रहोगे वहीं यज्ञ  कर ब्राह्मणों को भोजन करवाना यात्रा करते हुए अमर और दीपचंद एक राज्य में पहुंचे जहां की राजकुमारी का विवाह था परंतु जिस राजकुमार से उसका विवाह हो रहा था वह काना था यह बात किसी को पता ना चले इसलिए उस राजकुमार के पिता ने अमर से दूल्हे की जगह बैठने की विनती करी अमर ने विनती स्वीकार करते हुए राजकुमारी चंद्रिका से विवाह कर लिया लेकिन जब विदाई होने लगी तब अमर ने राजकुमारी चंद्रिका को सारी बात बता दी और उन्हें अपने पिता के घर छोड़कर काशी चला गया।

जब अमर 16 वर्ष का हुआ था तब उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया और यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और अन्न और वस्त्र दान किए उसी रात निद्रा में अमर की मृत्यु हो गई अब मर के मामा दीपचंद जोर-जोर से विलाप करने लगे उसी समय भगवान शिव और माता पार्वती वहां से गुजर रहे थे विल आफ की आवाज सुनकर और माता पार्वती ने शिवजी से कहा कि वह उस रोते हुए व्यक्ति का कष्ट दूर कर दें तब भगवान शिव ने कहा यह वही साहूकार का बालक है जिसे उन्होंने 16 वर्ष तक जीवित रहने का वरदान दिया था तब माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा हे प्राणनाथ इसका पिता 16 वर्ष से सोमवार का व्रत करते हुए आपको भोग लगाता है कृपया कर इस के दुखों को दूर करें तब माता पार्वती की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने अमर को जीवन का वरदान दिया वरदान प्राप्त होते ही अमर जीवित हो उठा उसने अपनी शिक्षा पूरी और अपने नगर की ओर वापस  लौट गया तब रास्ते में वह नगर आया है जहां अमर का विवाह हुआ था वहां के राजा और राजकुमारी चंद्रिका ने उन्हें पहचान लिया तब राजा ने राजकुमारी चंद्रिका को अमर के साथ प्रसन्नतापूर्वक विदा किया।

वहीं दूसरी ओर साहूकार और साहूकारनी जानते थे कि 16 वर्ष की आयु में उनके पुत्र की मृत्यु निश्चित थी इस कारण वह बड़े दुखी थे और कष्ट में अपना जीवन बिता रहे थे तभी उनका पुत्र अमर राजकुमारी चंद्रिका के साथ घर पहुंचा अमर को अपनी नवविवाहित पत्नी के साथ देखकर साहुकार और साहूकार ने बहुत प्रसन्न हुए उसी रात भगवान शिव ने साहूकार के सपने में आकर कहा हे श्रेष्ठी मैंने तुम्हारे सॉन्ग आपके व्रत से प्रसन्न होकर तुम्हारे  पुत्र को लंबी आयु प्रदान करें है दोस्तों इस प्रकार भाग्य में नहीं लिखे होने के बाद भी सोमवार के व्रत  के प्रभाव से साहूकार को पुत्र सुख की प्राप्ति  हुई हे भोलेनाथ जैसा सुख साहूकार और साहूकारनी ने को दिया वैसा ही इस कहानी को कहते सुनते और हुंकार भरते सबको देना जय भोलेनाथ जय माता पार्वती।

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