सावन सोमवार व्रत कथा

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पौराणिक कथा के अनुसार अमरपुर नगर में एक अमीर व्यापारी रहता था। नगर में सभी लोग उस व्यापारी का सम्मान करते थे। लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी जिस कारण वो दुखी रहता था। पुत्र प्राप्ति की इच्छा से वह व्यापारी हर सोमवार भगवान शिव की विशेष पूजा किया करता था। उस व्यापारी की भक्ति से प्रसन्न होकर एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा- ‘हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा भक्त है। हर सोमवार आपका व्रत रखता है और पूजा नियमित कर रहा है। भगवान, आप इस व्यापारी की मनोकामना अवश्य पूर्ण करें।’

पार्वती जी के काफी बार आग्रह करने पर भगवान शिव ने कहा- ‘तुम्हारे आग्रह पर मैं इस व्यापारी को पुत्र-प्राप्ति का वरदान देता हूं। लेकिन इसके पुत्र की उम्र सिर्फ 16 वर्ष ही होगी। उसी रात भगवान शिव ने उस व्यापारी को सपने में दर्शन देकर उसे पुत्र-प्राप्ति का वरदान दिया और ये भी बताया कि उसका पुत्र 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगा।

भगवान से वरदान पाकर व्यापारी को खुशी तो हुई, लेकिन पुत्र की अल्पायु की चिंता भी उसे सताने लगी। अभी भी व्यापारी पहले की तरह सोमवार का विधिवत व्रत करता रहा। कुछ समय बाद उसके घर अति सुंदर पुत्र का जन्म हुआ। व्यापारी को पुत्र-जन्म की अधिक खुशी नहीं हुई क्योंकि उसे पुत्र की अल्प आयु के रहस्य का पता था।

जब उस व्यापारी का पुत्र 12 वर्ष का हुआ तो शिक्षा के लिए उसे उसने वाराणसी भेजने का निश्चय किया। व्यापारी ने अमर के मामा को बुलाया और कहा कि अमर को शिक्षा प्राप्त करने के लिए वाराणसी छोड़ आओ और रास्ते में जहां भी विश्राम के लिए ठहरना, वहीं यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जाने। उन दोनों ने ऐसा ही किया। लंबी यात्रा के बाद मामा भांजे एक ऐसे नगर में पहुंचे जहां राजा की कन्या के विवाह की खुशी में पूरे नगर को सजाया गया था। उस कन्या का विवाह जिससे होने जा रहा था वो लड़का एक आंख से काना था। निश्चित समय पर बारात आ गई लेकिन वर का पिता अपने बेटे के काने होने के कारण बहुत चिंतित था। उसे भय सता रहा था कि कहीं राजा को इस बात का पता न चल जाए।

वर के पिता ने व्यापारी के पुत्र को देखा तो उसके मस्तिष्क में एक विचार आया कि क्यों न इस लड़के को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं और विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूं और राजकुमारी को अपने नगर में ले जाऊंगा। वर के पिता ने ऐसा सोचते हुए व्यापारी के बेटे और उसके मामा से बात की। दोनों ने वर के पिता की बात स्वीकार कर ली। ऐसे राजकुमारी का विवाह व्यापारी के बेटे के साथ संपन्न हुआ।

व्यापारी के बेटे ने जाते हुए राजकुमारी की ओढ़नी पर लिख दिया- ‘राजकुमारी चंद्रिका, तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ था, मैं तो वाराणसी में शिक्षा प्राप्त करने जा रहा हूं। अब तुम्हें जिस नवयुवक की पत्नी बनना पड़ेगा, वह काना है।’ जब राजकुमारी ने ये पढ़ा तो उसने काने लड़के के साथ जाने से इनकार कर दिया। उधर व्यापारी का बेटा अपने मामा के साथ वाराणसी पहुंच गया। उसने पढ़ना शुरू कर दिया।


जब उस युवक की आयु 16 वर्ष पूरी हुई तो उसने एक यज्ञ किया। यज्ञ की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराया और खूब अन्न, वस्त्र दान किए। रात को उस लड़के की मृत्यु हो गई। सूर्योदय पर जब मामा ने अपने भांजे को मृत देखा तो वो रोने-पीटने लगा। मामा के रोने, विलाप करने के स्वर समीप से गुजरते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने भी सुने। पार्वतीजी ने भगवान से कहा- ‘प्राणनाथ! मुझसे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहे। आप इस व्यक्ति के कष्ट दूर करें।

भगवान शिव ने जब देखा कि वो तो उसी व्यापारी का पुत्र है जिसकी उम्र कम थी तो वे पार्वती जी से बोले- ‘पार्वती! यह तो उसी व्यापारी का पुत्र है। मैंने इसे 16 वर्ष की आयु का वरदान दिया था। इसकी आयु तो पूरी हो गई।’ पार्वतीजी ने फिर भगवान शिव से निवेदन किया- ‘हे प्राणनाथ! आप इस लड़के को जीवित करें। नहीं तो इसके माता-पिता भी पुत्र की मृत्यु का समाचार सुनकर अपने प्राणों का त्याग कर देंगे। इस लड़के का पिता आपका परम भक्त है। वर्षों से सोमवार का व्रत कर रहा है। पार्वती जी के आग्रह करने पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित कर दिया।

शिक्षा समाप्त करके जब वह लड़का अपने मामा के साथ अपने नगर लौट रहा था तो दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह राजकुमारी के साथ हुआ था। उस नगर में भी उसने यज्ञ का आयोजन किया। उस नगर के राजा ने तुरंत उसे पहचान लिया। यज्ञ समाप्त होने पर राजा व्यापारी के बेटे और उसके मामा को महल में ले आए और उन्हें बहुत-सा धन, वस्त्र देकर राजकुमारी के साथ विदा किया।

लड़के के मामा ने नगर में पहुंचते ही एक दूत को घर भेजकर अपने आगमन की सूचना भेजी। बेटे के जीवित वापस लौटने की सूचना से व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। व्यापारी और उसकी पत्नी ने स्वयं को एक कमरे में बंद कर रखा था। भूखे-प्यासे रहकर वो दोनों अपने बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो दोनों अपने प्राण त्याग देंगे।

व्यापारी अपनी पत्नी के साथ नगर के द्वार पर पहुंचा। अपने बेटे के जीवित होने और उसके विवाह का समाचार सुनकर उसकी खुशी का ठिकाना न रहा। उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के सपने में आकर कहा- ‘हे श्रेष्ठी! मैंने तेरे सोमवार व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लंबी आयु प्रदान की है।’ ऐसा सुनकर व्यापारी काफी प्रसन्न हुआ।

 

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