दुर्गा अमृतवाणी 1 – मंगलमयी भय मोचिनी

Durga Maa

मंगलमयी भय मोचिनी दुर्गा सुख की खान
जिसके चरणों की सुधा स्वयं पिये भगवान

दुःखनाशक संजीवनी नवदुर्गा का पाठ
जिससे बनता भिक्षुक भी दुनिया का सम्राट

अम्बा दिव्या स्वरूपिणी का ऐसो प्रकाश
पृथ्वी जिससे ज्योतिर्मय उज्जव्वल है आकाश

दुर्गा परम सनातनी जग की सृजनहार
आदि भवानी महादेवी सृष्टि का आधार

जय जय दुर्गे माँ, जय जय दुर्गे माँ

सदमार्ग प्रदर्शनी न्यान का ये उपदेश
मन से करता जो मनन उसके कटे कलेश


जो भी विपत्ति काल में करे दुर्गा जाप
पूर्ण हो मनोकामना भागे दुःख संताप

उत्पन्न करता विश्व की शक्ति अपरम्पार
इसका अर्चन जो करे भव से उतरे पार

दुर्गा शोकविनाशिनी ममता का है रूप
सती साध्वी सतवंती सुख की कला अनूप

जय जय दुर्गे माँ, जय जय दुर्गे माँ

विष्णु ब्रह्मा रूद्र भी दुर्गा के है अधीन
बुद्धि विद्या वरदानी सर्वसिद्धि प्रवीण

लाख चौरासी योनियां से ये मुक्ति दे
महामाया जगदम्बिके जब भी दया करे

दुर्गा दुर्गति नाशिनी सिंघवाहिनी सुखकार
वेदमाता ये गायत्री सबकी पालनहार

सदा सुरक्षित वो जन है जिस पर माँ का हाथ
विकट डगरिया पे उसकी कभी ना बिगड़े बात

जय जय दुर्गे माँ, जय जय दुर्गे माँ


महागौरी वरदायिनी मैया दुःख निदान
शिवदूती ब्रह्मचारिणी करती जग कल्याण

संकटहरणी भगवती की तू माला फेर
चिंता सकल मिटाएगी घडी लगे ना देर

पारस चरणन दुर्गा के जग जग माथा टेक
सोना लोहे को करे अद्भुत कौतक देख

भवतारक परमेश्वरि लीला करे अनंत
इसके वंदन भजन से पापो का हो अंत

जय जय दुर्गे माँ, जय जय दुर्गे माँ
जय जय दुर्गे माँ, जय जय दुर्गे माँ

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