श्री दुर्गासप्तशती सार | ॥ अध्याय 1 ॥ | ॥ अध्याय 2 ॥ | ॥ अध्याय 3 ॥ | ॥ अध्याय 4 ॥ | ॥ अध्याय 5 ॥ | ॥ अध्याय 6 ॥ |
॥ अध्याय 7 ॥ | ॥ अध्याय 8 ॥ | ॥ अध्याय 9 ॥ | ॥ अध्याय 10 ॥ | ॥ अध्याय 11 ॥ | ॥ अध्याय 12 ॥ | ॥ अध्याय 13 ॥ |
या माया मधुकैट्भप्रमथनी या महिषोन्मूलिनी ।
या धुम्रेक्षणचंडमुंड्मथनी या रक्तबीजाशनी ।
शक्ती: शुंभनिशुंभ दैत्यदलीनी, या सिद्धीलक्ष्मी: परा ।
सा चंडी नवकोटीमूर्तिसहिता मां पातु विश्वेश्वरी ॥ १ ॥
स्तुता सुरै: पुर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेंद्रेण दिनेषु सेविता ।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानी भद्राण्यभिहन्तु चापदः ॥ २ ॥
या सांप्रतं चोद्धतदैत्यतापितैरस्माभिरीषा च सुरैर्नमस्यते ।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ॥ ३ ॥
या च स्म्रुता तत्क्षणमेव हन्ति नः सर्वापदो भक्तिविनम्रमूर्तिभि: ।
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः ॥ ४ ॥
सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम् ॥ ५ ॥
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते ॥ ६ ॥
स्रुष्टीस्थितिविनाशाम् शक्तिभूते सनातनी ।
गुणाश्रये गुणमये नारायणी नमोस्तुते ॥ ७ ॥
शरणागतदीनार्त परित्राण परायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणी नमोस्तुते ॥ ८ ॥
सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्राहि नो देवी दुर्गे देवी नमोस्तुते ॥ ९ ॥
श्री दुर्गासप्तशती सार | ॥ अध्याय 1 ॥ | ॥ अध्याय 2 ॥ | ॥ अध्याय 3 ॥ | ॥ अध्याय 4 ॥ | ॥ अध्याय 5 ॥ | ॥ अध्याय 6 ॥ |
॥ अध्याय 7 ॥ | ॥ अध्याय 8 ॥ | ॥ अध्याय 9 ॥ | ॥ अध्याय 10 ॥ | ॥ अध्याय 11 ॥ | ॥ अध्याय 12 ॥ | ॥ अध्याय 13 ॥ |