श्री हनुमान अमृतवाणी

Hanuman Ji Colors of Bhakti

रामायण की भव्य जो माला हनुमत उसका रत्न निराला
निश्चय पूर्वक अलख जगाओ जय जय जय बजरंग ध्याओ

अंतर्यामी है हनुमंता लीला अनहद अमर अनंता
रामकी निष्ठा नस नस अंदर रोम रोम रघुनाथ का मंदिर

सिद्धि महात्मा ये सुख धाम इसको कोटि कोटि प्रमाण
तुलसीदास के भाग्य जगाये साक्षात के दर्श दिखाए

सूझ बूझ धैर्य का है स्वामी इसके भय खाते खलकामी
निर्भिमान चरित्र है उसका हर एक खेल विचित्र है इसका

सुंदरकांड है महिमा इसकी ऐसी शोभा और है किसकी
जिसपे मारुती की हो छाया माया जाल ना उसपर आया

मंगलमूर्ति महसुखदायक लाचारों के सदा सहायक
कपिराज ये सेवा परायण इससे मांगो राम रसायन


जिसको दे भक्ति की युक्ति जन्म मरण से मलती मुक्ति
स्वार्थ रहित हर काज है इसका राम के मन पे राज है इसका

वाल्मीकि ने लिखी है महिमा हनुमान के गुणों की गरिमा
ये ऐसी अनमोल कस्तूरी जिसके बिना रामायण अधूरी

कैसा मधुर स्वाभाव है इसका जन जन पर प्रभाव है इसका
धर्म अनुकूल नीति इसकी राम चरण से प्रीती इसकी

दुर्गम काज सुगम ये करता जन मानस की विपदा हरता
युगो में जैसे सतयुग प्यारा सेवको में हनुमान निरारा

श्रद्धा रवि बजरंग की रे मन माला फेर
भय भद्रा छंट जाएंगे घडी लगे ना देर

अहिरावण को जिसने मारा तुझे भी देगा वो ही सहारा
शत्रु सेना के विध्वंसक धर्मी कर्मी के प्रसंशक

विजयलक्ष्मी से है विपोषित महावीर की छवि है शोभित
बाहुबल प्रचंड है इसका निर्णय अटल अखंड है इसका

हनु ने जग को ये समझाया बिना साधना किसने पाया
ज्ञान से तुम अज्ञान मिटाओ सद्गुण से दुर्गुण को भगाओ

हनुमत भजन यही सिखलाता पुण्य से पाप अदृश्य हो जाता
जो जान पढ़े हनुमान चालीसा हनु करे कल्याण उसी का


संकटमोचन जी भर पढ़िए मन से कुछ विश्वास भी करिये
बिना भरोसे कुछ नहीं होता तोता रहे पिंजरे का तोता

पाठ करो बजरंग बाण का यही तो सूरज है कल्याण का
रोम रोम में शब्द उतारो ऊपर ऊपर से ना पुकारो

हनुमान वाहुक है एक वाहन सच्चे मन से करो आह्वान
अपना बनाएगा वो तुमको गले लगाएगा वो तुमको

भीतर से यदि रोये ना कोई उसका दिल से होये ना कोई
हनुमत उसको कैसे मिलेगा सुख का कैसे फूल खिलेगा

मन है यदि कौवे के जैसा हनु हनु फिर रटना है कैसा
कपडे धोने से क्या होगा नस नस भीतर है यदि धोखा

मन की आँखे भी कभी खोलो मन मंदिर में उसे टटोलो
हनुमत तेरे पास है रहता देख तू पिके अमृत बहता

कपिपति हनुमंत की सेवा करके देख
तेरे नसीबो की पल में बदल जाएगी रेख

बजरंग सचिदानंद का प्यारा भक्ति सुधा की पावन धारा
अर्जुन रथ की ध्वजा पे साजे बन के सहायक वह विराजे

जनक नंदिनी की ममता में अवधपुरी की सब जनता में
रमी हुई है छवि निराली भक्त राम का भाग्यशाली

देखा एक दिन उसने जाके सीता को सिन्दूर लगाते
भोलेपन में हनु ने पूछा क्यूँ लागे ये इतना अच्छा

ऐसा करने से क्या होता मांग में भरने से क्या होता
मुझे भी मैया कुछ बतलाओ क्या रहस्य है ये समझाओ

जानकी माता बोली हँसके बाँध लो पल्ले ये तुम कसके
न्याय करता अंतर्यामी रघुवर जो है तुम्हरे स्वामी

जितना ये मैं मांग में भरती उतनी उसकी आयु बढ़ती
मैं जो उसको मन से चाहती इसीलिए ये धर्म निभाती

रामभक्त हनुमान प्यारे तीन लोक से है जो न्यारे
श्रद्धा का वो रंग दिखाया रंग ली झट सिन्दूर से काया

बिलकुल ही वो हो सिन्दूरी प्रभु की भक्ति करके पूरी
अद्भुत ही ये रूप सजा के राजसभा में पहुंचे जाके

देख कपि दी दशा न्यारी खिलखिलाये सब दरबारी
प्रभु राम भी हँसके बोले ये क्या रूप है हनुमत भोले

हनु कहा जो लोग है हँसते वो नहीं इसका भेद समझते
जानकी मैया है ये कहती इस से आपकी आयु बढ़ती

चोला ये सिन्दूर का चढ़े जो मंगलवार
कपि के स्वामी की इस से आयु बढे अपार

विजय प्राप्त कर जब लंका पे राम अयोध्या नगरी लौटे 
राजसिंहासन पर जब बैठे फूल गगन से ख़ुशी के बरसे

जानकी वल्लभ करुणा कर ने सबको दिए उपहार निराले
मुक्ताहार जो मणियों वाला जिसका अद्भुत दिव्या उजाला

सीता जी के कंठ सजाया राम ही जाने राम की माया
सीता ने पल देर ना कीन्ही वो माला हनुमान को दीन्हि

महावीर थे कुछ घबराये रहे देखते वो चकराए
जैसे उनको भाये ना माला हृदय को भरमाये ना माला

गले से माला झट दी उतारी तोड़े मोती बारी बारी
हीरे कई चबाकर देखे सारे रत्न दबाकर देखे

व्याकुल उसकी हो गयी काया पानी नैनन में भर आया
जैसे दिल ही टूट गया हो भाग्य का दर्पण फूट गया हो

चकित हुए थे सब दरबारी बोझ सिया के मन पे भारी
राम ने कैसे खेल रचाया कोई भी इसको जान ना पाया

पूछा सिया ने अंजनी लाला माँ का प्यार था ये तो माला
माँ की ममता क्यों ठुकरा दी कौन सी गलती की ये सजा दी

बजरंग बोले आंसू भर के जनक सुता के चरण पकड़ के
मैया हर एक मोती देखा तोड़ तोड़ के सब कुछ परखा

कहीं ना मूरत राम की माता वो माला किस काम की माता
कोड़ी के वो हीरे मोती जिनमे राम की हो ना ज्योति

सुनके वचन हनुमान के कहा सिये तत्काल
राम तेरे तुम राम के हो ऐ अंजनी के लाल

एक समय की कथा ये सुनिए कपि महिमा के मोती चुनिए
राम सेतु के निकट कहीं पर राम की धुन में खोये कपिवर

सूर्य पुत्र शनि अभिमानी ने जाने क्या मन में ठानी
हनुमान को आ ललकारा देखना है बल मैंने तुम्हारा

बड़ा कुछ जग से सुना सुनाया युद्ध मैं तुमसे करने आया
महावीर ने हँसके टाला काहे रूप धरा विकराला

महाप्रतापी शनि तू मन शक्ति कहीं जा और दिखाना
राम भजन दे करने मुझको हाथ जोड़ मैं कहता तुझको

लेकिन टला ना वो अहंकारी कहा अगर तू है बलकारी
मुझको शक्ति ज़रा तू दिखादे कितने पानी में है बता दे

हनुमान से पूंछ बढ़ाकर शनि के चारो ओर घुमाकर
कस के उसे लपेटा ऐसे नाग जकड़ता किसी को जैसे

खूब घुमा के दिया जो झटका बार बार पत्थरो पे पटका
हो गया जब वो लहू लुहान चूर हो गया सब अभिमान

ऐसे अब ना छोडूंगा तुझको कहा हनु ने वचन दे मुझको
मेरे भक्तो को तेरी दृष्टि भूल के कष्ट कभी ना देगी

शनि ने हाँ का शक्त ऊंचारा तब हुआ जाकर छुटकारा
चोट की पीड़ा से वो रोकर तेल मांगने लगा दुखी होकर

शास्त्र हमें ये ही बताता जो भी शनि को तेल चढ़ाता
उसकी दशा से वो बच जाता हनुमान की महिमा गाता

शनि कभी जो आ घेरे मत डरियो इंसान
जाप करो हनुमान का हो जाए कल्याण

हनुमान निर्णायक शक्ति हनुमान पुरषोतम भक्ति
हनुमान है मार्गदर्शक हनुमान है भय विनाशक

हनुमान है दया निधान हनुमान है गुणों की खान
हनुमान योद्धा सन्यासी हनुमान है अमर अविनाशी

हनुमान बल बुद्धि दाता हनुमान चित शुद्धि करता
हनुमान स्वामी का सेवक हनुमान कल्याण दारक

हनुमान है ज्ञान ज्योति हनुमान मुक्ति की युक्ति
हनुमान है दीन का रक्षक हनुमान आदर्श है शिक्षक

हनुमान है सुख का सागर हनुमान है न्याय दिवाकर
हनुमान है सच का अंजन हनुमान निर्दोष निरंजन

हनुमान है आश्रय दाता हनुमान सुखधाम विधाता
हनुमान है जग हितकारी हनुमान है निर्विकारी

हनुमान त्रिकाल की जाने हनुमान सबको पहचाने
हनुमान से मनवा जोड़ो हनुमान से मुँह ना मोड़ो

हनुमान का कीजे चिंतन हनुमान हर सुख का सागर
हनुमान को ना बिसराओ हनुमान शरण में जाओ

हनुमान उत्तम दानी हनुमान का जप कल्याणी
हनुमान जग पालनहारा हनुमान ने सबको तारा

हनुमान की फेरो माला हनुमान है दीनदयाला
हनुमान को सिमरो प्यारे हनुमान है साथ तुम्हारे

पवन के सुत हनुमान का जिसके सिर पर हाथ
उसको कभी डराये ना दुःख की काली रात

जय जय जय हनुमान, जय हो दया निधान
जय जय जय हनुमान, जय हो दया निधान
जय जय जय हनुमान, जय हो दया निधान

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