माता दुर्गा का छठा रूप है मां कात्यायनी का। कात्य गोत्र के महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री रूप में जन्म लेने से इनका नाम कात्यायनी पड़ा। दिव्यता की अति गुप्त रहस्य एवं शुद्धता का प्रतीक यह देवी मनुष्य के आंतरिक सूक्ष्म जगत से नकारात्मकता का नाश कर सकारात्मकता प्रदान करती हैं। चार भुजाओं वाली देवी के इस रूप का वर्ण सुनहरा और चमकीला है। रत्न आभूषण से अलंकृत देवी कात्यायनी का वाहन खूंखार सिंह है जिसकी मुद्रा तुरंत झपट पड़ने वाली होती है। ऊपर वाली दाई भुजा से माता की ऊपर वाली भुजा अभय मुद्रा में होती है तथा नीचे वाली वर मुद्रा में होती है। बाई तरफ की उपरी भुजा से उन्होंने चंद्रहास तलवार धारण की है तो नीचे वाले हाथ में कमल का पुष्प पकड़े रहती है। एकाग्रता से माता की पूजा करने वाले को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है। माता की उपासना कर शहद का भोग लगाएं जिससे जीवन में खुशहाली यौवन और संपन्नता बनी रहती है।
मां कात्यायनी बृहस्पति ग्रह की स्वामिनी मानी गई हैं। कात्यायनी देवी की पूजा करने से ब्रहस्पति ग्रह से सम्बंधित दोष समाप्त होते हैं।
मां कात्यायनी की कथा:
कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। इनका गुण शोधकार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। ये वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। इसीलिए ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। मां कात्यायनी शत्रुहंता है इसलिए इनकी पूजा करने से शत्रु पराजित होते हैं और जीवन सुखमय बनता है। जबकि मां कात्यायनी की पूजा करने से कुंवारी कन्याओं का विवाह होता है। नवरात्रि के छठे दिन भक्त का मन आग्नेय चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए। अगर भक्त खुद को पूरी तरह से मां कात्यायनी को समर्पित कर दें, तो मां कात्यायनी उसे अपना असीम आशीर्वाद प्रदान करती है।
।। पूजन मंत्र ।।
चंद्रहासोज्जवलकरा, शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यात्, देवी दानवघातिनी।।