अक्षय तृतीया

Akshaya Tritiya

अक्षय का अर्थ होता है “जो कभी खत्म ना हो” और हर साल वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है इसीलिए एसा कहा जाता है, कि अक्षय तृतीया वह तिथि है जिसमें सौभाग्य और शुभ फल का कभी क्षय नहीं होता। इस दिन होने वाले कार्य मनुष्य के जीवन को कभी न खत्म होने वाले शुभ फल प्रदान करते है। इस दिन मनुष्य जीतने भी पुण्य कर्म तथा दान करता है। कहते हैं उसका अनन्त शुभ फल मिलता है। इस दिन बिना किसी मुहुर्त के भी शुभ कार्य किए जा सकते है और साथ ही इस दिन सोने को खरीदने की खास मान्यता है। तो अब आइए जानते हैं आखिर क्यों मनाई जाती है अक्षय तृतीया और इस दिन का महत्व।


अक्षय तृतीया की पैराणिक मान्यता :

पहली मान्यता: हिन्दू धर्म की मान्यता कि इस दिन विष्णु भगवान के छठवें अवतार परशुराम भगवान का जन्म हुआ था। इस दिन भगवान विष्णु छटवी बार परशुराम के रूप में धरती पर अवतरित हुए थे, और इसीलिए यह दिन परशुराम के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

दूसरी मान्यता: अक्षय तृतीया के ही दिन महर्षि वेदव्यास ने पांचवे वेद महाभारत को लिखना प्रारंभ किया था, जिसमें श्रीमद्भागवत गीता का ज्ञान भी मिलता है। इस कारण शुभ फलों की प्राप्ति के लिए श्रीमद्भागवत गीता के अठारहवें अध्याय का पाठ इस दिन करना चाहिए।

तीसरी मान्यता: अक्षय तृतीया के दिन राजा भागीरथ द्वारा किए गए हजारों वर्षों के तप के फलस्वरूप गंगा माता स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। इसलिए इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से जीवन के सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

चौथी मान्यता: इस दिन कुबेर की शिव आराधना से प्रसन्न हो कर शिवजी ने कुबेर से वर मांगने को कहा । फिर कुबेर ने अपना धन एवं संपत्ति लक्ष्मी जी से पुनः प्राप्त करने का वरदान मांगा । तभी शंकरजी ने कुबेर को लक्ष्मीजी का पूजन करने की सलाह दी। इसीलिए तब से ले कर आजतक अक्षय तृतीया पर लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है।

पांचवी मान्यता: बंगाल में इस खास दिन पर विघ्नहर्ता गणेश और धन की देवी मां लक्ष्मी का पूजन व्यापारियों द्वारा किया जाता है और साथ ही इस दिन व्यापारी नई लेखा-जोखा किताब की शुरुआत भी करते हैं।



अक्षय तृतीया की कथा

एक समय की बात है शाकलनगर में एक धर्मदास नामक वैश्य रहता है। वह बहुत ही गरीब था। वह हमेशा अपने परिवार के भरण – पोषण के लिए चिंतित रहता था. उसके परिवार में कई सदस्य थे। धर्मदास धार्मिक विचारों वाला व्यक्ति था। वह दान-पुण्य का काम बड़ी श्रद्धा पूर्वक करता था। भगवान के प्रति उसकी असीम आस्था थी। वह हमेशा ब्राह्मणों का आदर सत्कार किया करता था। एक दिन की बात है। धर्मदास को किसी दूसरे के माध्यम से अक्षय तृतीया के महत्व का पता चला। उस व्यक्ति ने धर्मदास को बताया, कि अक्षय तृतीया के दिन पूजा-पाठ और ब्राह्मणों को दान कराने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती हैं। यह बात धर्मदास के मन में बैठ गई।

जब अक्षय तृतीया की तिथि आई, तो उसने उस दिन सुबह-सुबह स्नान करके पितरों और देवी-देवताओं की पूजा अर्चना करके ब्राह्मणों को आदर सम्मान पूर्वक भोजन कराया। इस प्रकार से वैश्य हर साल अक्षय तृतीया के दिन पूजा-पाठ करने लगा। उसका ऐसा करना उसके घरवालों को ठीक नहीं लगता था। उसकी पत्नी हमेशा उसे ऐसा करने से रोका करती थी, उन्होने कहा कि अगर धर्मदास इतना सब कुछ दान में दे देगा, तो उसके परिवार का पालन–पोषण कैसे होगा. फिर भी धर्मदास अपने दान और पुण्य कर्म से विचलित नहीं हुआ और उसने ब्राह्मणों को कई प्रकार का दान दिया. उसके जीवन में जब भी अक्षय तृतीया का पावन पर्व आया, प्रत्येक बार धर्मदास ने विधि से इस दिन पूजा एवं दान आदि कर्म किया. बुढ़ापे का रोग, परिवार की परेशानी भी उसे, उसके व्रत से विचलित नहीं कर पायी.

अगले जन्म में वह द्वारका के कुशावती नगर में पैदा हुआ। बड़ा होकर वह उस नगर का राजा बन गया। आपको बता दें, यह सब अक्षय तृतीया के पूजा-पाठ का ही फल था। अगले जन्म में भी वह धार्मिक विचारों वाला व्यक्ति ही था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन इस कथा को पढ़ने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। इसलिए अक्षय तृतीया के दिन इस कथा को जरूर पढ़ें और दूसरों को सुनाएं।


अक्षय तृतीया के दिन जरूर करें इन मंत्रों का जाप

लक्ष्मी बीज मंत्र – ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नमः॥
महालक्ष्मी मंत्र – ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मयै नम:॥
लक्ष्मी गायत्री मंत्र – ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:
धनाय नमो नम:
ॐ लक्ष्मी नम:
ॐ ह्रीं ह्रीं श्री लक्ष्मी वासुदेवाय नम:
लक्ष्मी नारायण नम:
पद्मानने पद्म पद्माक्ष्मी पद्म संभवे तन्मे भजसि पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम्
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नम:
ॐ धनाय नम:
ॐ ह्रीं श्री क्रीं क्लीं श्री लक्ष्मी मम गृहे धन पूरये, धन पूरये, चिंताएं दूरये-दूरये स्वाहा:
ऊं ह्रीं त्रिं हुं फट

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