श्री दुर्गा माता जी की आरती–2

Maa Durga

आरती जगजननी जय! जय! माँ

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !
भयहारिणी, भवतारिणी, भवभामिनि जय जय।

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

तू ही सत्-चित्-सुखमय, शुद्ध ब्रह्मरूपा।
सत्य सनातन, सुन्दर पर-शिव सुर-भूपा॥

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

आदि अनादि, अनामय, अविचल, अविनाशी।
अमल, अनन्त, अगोचर, अज आनन्दराशी॥

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !


अविकारी, अघहारी, अकल कलाधारी।
कर्ता विधि, भर्ता हरि, हर संहारकारी॥

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

तू विधि-वधू, रमा, तू उमा महामाया।
मूल प्रकृति, विद्या तू, तू जननी जाया॥

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

राम, कृष्ण तू, सीता, ब्रजरानी राधा।
तू वांछाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा॥

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

दश विद्या, नव दुर्गा नाना शस्त्रकरा।
अष्टमातृका, योगिनि, नव-नव रूप धरा॥

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू॥


जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

सुर-मुनि मोहिनि सौम्या, तू शोभाधारा।
विवसन विकट सरुपा, प्रलयमयी, धारा॥

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

तू ही स्नेहसुधामयी, तू अति गरलमना।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि तना॥

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

मूलाधार निवासिनि, इह-पर सिद्धिप्रदे।
कालातीता काली, कमला तू वरदे॥

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

शक्ति शक्तिधर तू ही, नित्य अभेदमयी।
भेद प्रदर्शिनि वाणी विमले! वेदत्रयी॥

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

हम अति दीन दु:खी माँ! विपत जाल घेरे।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे॥

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

निज स्वभाववश जननी! दयादृष्टि कीजै।
करुणा कर करुणामयी! चरण शरण दीजै॥

जगजननी जय! जय! माँ! जगजननी जय! जय !

।।इति श्री दुर्गा माता जी आरती समाप्त।।

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