श्री धनवंतरी चालीसा

Shri Dhanwantri

॥दोहा॥

करूं वंदना गुरू चरण रज, ह्रदय राखी श्री राम ।
मातृ पितृ चरण नमन करूँ, प्रभु कीर्ति करूँ बखान ।।1।।

तव कीर्ति आदि अनंत है , विष्णुअवतार भिषक महान।
हृदय में आकर विराजिए,जय धन्वंतरि भगवान ।।2।।

॥चौपाई॥

जय धनवंतरि जय रोगारि। सुनलो प्रभु तुम अरज हमारी।।1।।
तुम्हारी महिमा सब जन गावें । सकल साधुजन हिय हरषावे।।2।।

शाश्वत है आयुर्वेद विज्ञाना । तुम्हरी कृपा से सब जग जाना ।।3।।
कथा अनोखी सुनी प्रकाशा । वेदों में ज्यूँ लिखी ऋषि व्यासा ।।4।।

कुपित भयऊ तब ऋषि दुर्वासा । दीन्हा सब देवन को श्रापा ।।5।।
श्री हीन भये सब तबहि । दर दर भटके हुए दरिद्र हि ।।6।।

सकल मिलत गए ब्रह्मा लोका । ब्रह्म विलोकत भयेहुँ अशोका ।।7।।
परम पिता ने युक्ति विचारी । सकल समीप गए त्रिपुरारी ।।8।।


उमापति संग सकल पधारे । रमा पति के चरण पखारे ।।9।।
आपकी माया आप ही जाने । सकल बद्धकर खड़े पयाने।।10।।

इक उपाय है आप हि बोले । सकल औषध सिंधु में घोंले ।।11।।
क्षीर सिंधु में औषध डारी । तनिक हंसे प्रभु लीला धारी ।।12।।

मंदराचल की मथानी बनाई । दानवो से अगुवाई कराई ।।13।।
देव जनो को पीछे लगाया । तल पृष्ठ को स्वयं हाथ लगाया ।।14।।

मंथन हुआ भयंकर भारी । तब जन्मे प्रभु लीलाधारी ।।15।।
अंश अवतार तब आप ही लीन्हा । धनवंतरि तेहि नामहि दीन्हा ।।16।।

सौम्य चतुर्भुज रूप बनाया । स्तवन सब देवों ने गाया ।।17।।
अमृत कलश लिए एक भुजा । आयुर्वेद औषध कर दूजा ।।18।।

जन्म कथा है बड़ी निराली । सिंधु में उपजे घृत ज्यों मथानी ।।19।।
सकल देवन को दीन्ही कान्ति । अमर वैभव से मिटी अशांति ।।20।।

कल्पवृक्ष के आप है सहोदर । जीव जंतु के आप है सहचर ।।21।।
तुम्हरी कृपा से आरोग्य पावा । सुदृढ़ वपु अरु ज्ञान बढ़ावा ।।22।।

देव भिषक अश्विनी कुमारा । स्तुति करत सब भिषक परिवारा ।।23।।
धर्म अर्थ काम अरु मोक्षा । आरोग्य है सर्वोत्तम शिक्षा ।।24।।

तुम्हरी कृपा से धन्व राजा । बना तपस्वी नर भू राजा ।।25।।
तनय बन धन्व घर आये । अब्ज रूप धनवंतरि कहलाये ।।26।।


सकल ज्ञान कौशिक ऋषि पाये । कौशिक पौत्र सुश्रुत कहलाये ।।27।।
आठ अंग में किया विभाजन । विविध रूप में गावें सज्जन ।।28।।

अथर्ववेद से विग्रह कीन्हा । आयुर्वेद नाम तेहि दीन्हा ।।29।।
काय ,बाल, ग्रह, उर्ध्वांग चिकित्सा । शल्य, जरा, दृष्ट्र, वाजी सा ।।30।।

माधव निदान, चरक चिकित्सा । कश्यप बाल , शल्य सुश्रुता ।।31।।
जय अष्टांग जय चरक संहिता । जय माधव जय सुश्रुत संहिता ।।32।।

आप है सब रोगों के शत्रु । उदर नेत्र मष्तिक अरु जत्रु।।33।।
सकल औषध में है व्यापी । भिषक मित्र आतुर के साथी ।।34।।

विश्वामित्र ब्रह्म ऋषि ज्ञानि। सकल औषध ज्ञान बखानि ।।35।।
भारद्वाज ऋषि ने भी गाया । सकल ज्ञान शिष्यों को सुनाया।।36।।

काय चिकित्सा बनी एक शाखा । जग में फहरी शल्य पताका ।।37।।
कौशिक कुल में जन्मा दासा । भिषकवर नाम वेद प्रकाशा ।।38।।

धन्वंतरि का लिखा चालीसा । नित्य गावे होवे वाजी सा ।।39।।
जो कोई इसको नित्य ध्यावे । बल वैभव सम्पन्न तन पावें ।।40।।

॥दोहा॥

रोग शोक सन्ताप हरण, अमृत कलश लिए हाथ ।
ज़रा व्याधि मद लोभ मोह , हरण करो भिषक नाथ ।।

।।।इति श्री धन्वंतरि चालीसा।।।

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