श्री भाग्य चालीसा

Ashtalakshmi Colorsofbhakti

॥दोहा॥

सकल जगत मंगल भयो आपन कीन कृपाय
तीनो लोक कीरत श्री शुभ संग समाय

॥चौपाई॥

रूप विलक्षण चंचल लोचन, दर्शन मात्र हैं संकट मोचन
तुमरे सत्व अनेकों दाता, सूर्य पुत्र तुम हौ बिन माता

ब्रहमादिक तव पार ना पावै, सकल जगत तुमरो यश गावै
रवि पुत्रम तुम गहन अजाना, आप करो जग सकल विधाना

आज्ञा असुर तप कियो भयंकर, भोले नाथ दियो इच्छित वर
आज्ञा तब हुंकार लगाई, सूर्य देव पाताल मह आई

रवि अगन तन बीच समाई, भागो आज्ञा जान बचाई
अगन लियो इक अदभुत रूपा, जन्मो बालक रूप अनूपा

हुए चकित भानू तव देखी, तुमरे हाथ जगत की लेखी
अतुलित प्रेम पिता मन जागा, नाम भयो तव जग मह भागा


श्रीपति दीन आशीष अचंभा, आपन दीप्ती मम प्रतिबिम्बा
चारी भुजा तनु आभा अदभुत, कर्ण दीप ज्योती जग विस्मित

स्थाविर ऐसो नाम बखाना, हाथ वज्र सतघात समाना
महादेव बाघाम्बर दीना, पुष्प कमल हरिप्रिया से लीना

शुची शारदा संग ना भाए, द्वि शक्ति तव पृष्ठतः आये
आपन अदभुत कच्छप वाहन, तीनो लोक करत तुम विचरण

मृत्यु भय ना शनी सतावै, जो नर शरण अनुज की आवै
ग्रह नक्षत्र दिशा के संकट, मिटें सभी सुन आपन आहट

भक्तन के तुम भक्त तुम्हारे, सिद्ध सफल संपन्न हौं सारे
सपनेहूँ नहीं आए विपत्ति, मिले अतुल वैभव संपत्ति

अनाथन के हो नाथ गोसांई, दीनन के प्रभु सदा सहाई
आपन भक्त जगत विख्याता, तुम ही श्रेष्ठ सुखन के दाता

तुम पाताल अलंकृत कीना, शरणागत को कष्ट कभी ना
आपन बल जग विदित सदा ही, कृपा बिना जीवन कछु नाही

तुमरो नाम बसै भगवाना, प्रबल विकट तुम सब जग जाना
रामचंद्र बनवास पठाए, गौपालक मथुरा तज आए

देवन पर भारी तुम देवा, करत देव कोटी तव सेवा
है पाताल वासिनी वश में, वास देवग्रह है द्वादश में


वरुण नन्दिनी अतुलित रूपम, सौंदर्या के अति समीपम
केवल कदली फल नारिकेलम, धुप सुगंधित पूजन दीपम

आप हरो संकट भव पीरा, तुष्ट प्राण सह सौम्य शरीरा
आपन कोप सू बच नहीं पावै, कृपा बिना श्रम निष्फल जावै

देवन मिल करी कंज जुहारी, अर्चन भाग करें नर नारी
पदमज देवन सन्मुख माना, भाग होई अब अन्तर्ध्याना

रुष्ट हुए जब अन्तर्ध्याना, भ्रमित भये नर सकल सुजाना
विस्मृत कियो जगत जब आपन, जीवन अर्थ भयो संतापन

जो भी धरै प्रभु तव ध्याना, ताकर होए सकल कल्याना
जो चित तुमरे चरनन लावै, जनम सफल ताको होई जावै

छूटे जनम मरण का बंधन, तुम सम नाही कोई दुःख भंजन
जो नर पढ़े यह भाग्य चालीसा, संकट मिटें बने अवनीसा

॥दोहा॥

श्री भाग्य चालीसा जो पाठ करे धर ध्यान
कृपा सिन्धु मंगल करें त्वरित होये कल्यान
दास शरण में आपकी दीजै आप आधार
वृष्टी परमानन्द की कीजै अतुल अपार

इति श्री भाग्य चालीसा संपूर्णम

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