श्री सूक्तम्

Shri Lakshmi

हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्णरजतस्त्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह।। 1 ।।

हिंदी अनुवाद: लक्ष्मीपते! आप उन लक्ष्मी को मेरे अभिमुख करें जो हितैषिणी एवं रमणीय हैं, समस्त पापों को नाश करने वाली हैं, अनुरूप माला आदि आभरणों से युक्त हैं, सब को प्रसन्न करने वाली हैं तथा हिरण्य आदि समस्त सम्पत्ति की स्वामिनी हैं।

तां म आवह जातवेदो, लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्।। 2 ।।

हिंदी अनुवाद: लक्ष्मीपते ! आपका नित्य अनुगमन करनेवाली तथा भक्तों पर अनुग्रह करने वाली लक्ष्मी को आप मेरे अभिमुख करें, जिनके सान्निध्य से में धातु सम्पत्ति, पशुधन और पुत्र, आदि परिजन प्राप्त कर सकूं।

अश्वपूर्वां रथमध्यां, हस्तिनादप्रमोदिनीम्।
श्रियं देवीमुप ह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम् ।। 3 ।।

हिंदी अनुवाद: मैं उन लक्ष्मी का सान्निध्य प्राप्त करता हूँ जो सर्वव्यापी भगवान को अग्रगामी बनाये रखती हैं, जीवों के हृदय में तथा भगवान के वक्षःस्थल में निवास करती हैं तथा गजेन्द्र आदि आश्रित जनों के आर्तनाद पर द्रवित होती हैं । वह लक्ष्मी देवी मुझ पर प्रसन्न हों।

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।
पद्मे स्थितां पद्मवर्णां त्वामिहोपह्वये श्रियम्।। 4 ।।

हिंदी अनुवाद: जो सुखस्वरूपा, मन्द—मन्द मुस्कराने वाली, स्वर्णभवन में विराजमान, दयाद्र, प्रकाशजननी, पूर्णकाम, भक्तों को तृप्त करने वाली, कमलबासिनी एवं पद्मवर्णा हैं, उन लक्ष्मी देवी का मैं यहाँ आह्वान करता हूँ।

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे।। 5 ।।

हिंदी अनुवाद: मैं उन लक्ष्मी की शरण ग्रहण करता हूँ जो आनन्द स्वरूपा हैं, जिनका रूप दिव्य एवं मंगलमय है, जिनका यथा सर्वविदित है, जो इस संसार में देवताओं के द्वारा सुपूजित तथा नित्यविभूति में नित्य पार्षदों एवं मुक्तजनों की पूज्य हैं, जो उदारशीला हैं तथा जो कमल में निवास करती हैं। मेरा अज्ञान नष्ट हो जाय इसलिये में लक्ष्मी को शरण्य के रूप में वरण करण करता है।

आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्याअलक्ष्मीः।। 6 ।।

हिंदी अनुवाद: आदित्यवर्णे! आपके संकल्प से वृक्षों का पति बिल्ववृक्ष उत्पन्न हुआ। आपही की कृपा से उसके फल आपके विरोधी अज्ञान, काम क्रोध आदि विघ्नों तथा लक्ष्मी और उनके सहचारियों को नष्ट करें।


उपैतु मां देवसखः, कीर्तिश्च मणिना सह।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिवृद्धिं ददातु मे।। 7 ।।

हिंदी अनुवाद: लक्ष्मिदेवि ! भगवान् नारायण कीति और चिन्तामणि रत्न के साथ मुझे प्राप्त हों। मैं इस राष्ट्र में उत्पन्न हुआ हूँ । लक्ष्मी कीर्तिवृद्धि मुझे प्रदान करें।

क्षुत्पिपासा मलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम्।
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान निर्णुद मे गृहात्।। 8 ।।

हिंदी अनुवाद: हे देवि ! मैं क्षुधा, पिपासा, मलिनता एवं दुस्सह की पत्नी अलक्ष्मी का निवारण चाहता हूँ। आप अनैश्वर्य एवं असमृद्धि को मेरे गृह से दूर करें।

गन्धद्वारां दुराधर्षां, नित्यपुष्टां करीषिणीम्।
ईश्वरीं सर्वभूतानां, तामिहोप ह्वये श्रियम्।। 9 ।।

हिंदी अनुवाद: मैं उन लक्ष्मी का यहाँ आह्वान करता हूँ जो यशप्रदात्री हैं, साधनाहीन पुरुषों को प्राप्त न होने वाली हैं सर्वदा समृद्ध मङ्गलमयी एवं समस्त प्राणियों की अधीश्वरी हैं।

मनसः काममाकूतिं, वाचस्सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः।। 10 ।।

हिंदी अनुवाद: हे लक्ष्मी ! मन की कामना, बुद्धि का संकल्प, वाणी की प्रार्थना, जीवधन समृद्धि, अन्न समृद्धि सुस्थिर हो, ऐसी अभिलाषा है। मुझे यश प्राप्त होवे।

कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्।। 11 ।।

हिंदी अनुवाद: कर्दम प्रजापते ! उन लक्ष्मी को मेरे यहां प्रतिष्ठित करें जिनको श्राप ने कन्या के रूप में स्वीकार किया है। पद्ममाला धारण करने वाली उन माता लक्ष्मी को मेरे कुल में प्रतिष्ठित करें।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।। 12 ।।

हिंदी अनुवाद: चिक्लीत ! भगवान् के आयतनभूत जल, घृत आदि को मेरे गृह में उत्पन्न करें। आप मेरे गृह में निवास करें और प्रकाशमयी माता लक्ष्मी को मेरे कुल में निवास करावें।

आर्द्रां पुष्करिणीं यष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आ वह ।। 13 ।।

हिंदी अनुवाद: लक्ष्मीपते ! उन लक्ष्मी को अभिमुख करें जिनका हृदय आर्द्र है, जो कमल में निवास करती हैं, जो यज्ञस्वरूपा हैं, पिङ्गलवर्णवाली हैं, भक्तजनों को श्राह्लादित करने वाली हैं तथा स्वर्ण आदि की स्वामिनी हैं।

आर्द्रां य करिणीं पुष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ।। 14 ।।

हिंदी अनुवाद: हे लक्ष्मीपते ! उन लक्ष्मी को मेरे अभिमुख करें जिनका हृदय आर्द्र है, जो कमल में निवास करती हैं, जो पुष्टिस्वरूपा हैं, स्वर्णमयी हैं, स्वर्णपुष्पों की माला धारण करने वाली हैं, जो आपके समान समस्त चेतनों एवं अचेतन पदार्थों का व्यापन भरण एवं पोषण करने वाली हैं तथा जो हिरण्य श्रादि की स्वामिनी हैं।

तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ।। 15 ।।

हिंदी अनुवाद: लक्ष्मीपते ! आपका नित्य अनुगमन करने वाली लक्ष्मी को भाप मेरे अभिमुख करें जिनके सान्निध्य से में अपार धातु सम्पत्ति, पशुधन, सेवक – सेविकायें, अश्व प्रादि वाहन सम्पत्ति तथा पुत्र पोत्र आदि प्राप्त करूं।


य: शुचि: प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।
सूक्तं पंचदशर्चं च श्रीकाम: सततं जपेत्।। 16 ।।

हिंदी अनुवाद: जिस व्यक्ति को लक्ष्मी के अनुग्रह की कामना हो वह पवित्र और सावधान होकर प्रतिदिन घृत से होम करे और उसके साथ उपर्युक्त १५ ऋचाओं का निरन्तर पाठ करे ॥१६॥

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