श्री भागवत पुराण जी की आरती-1

आरती अतिपावन पुरान की
आरती अतिपावन पुरान की ।धर्म-भक्ति-विज्ञान-खान की ॥

महापुराण भागवत निर्मल ।शुक-मुख-विगलित निगम-कल्प-फल ॥
परमानन्द सुधा-रसमय कल ।लीला-रति-रस रसनिधान की ॥

॥ आरती अतिपावन पुरान की… ॥

कलिमथ-मथनि त्रिताप-निवारिणि ।जन्म-मृत्यु भव-भयहारिणी ॥
सेवत सतत सकल सुखकारिणि ।सुमहौषधि हरि-चरित गान की ॥

॥ आरती अतिपावन पुरान की… ॥

विषय-विलास-विमोह विनाशिनि ।विमल-विराग-विवेक विकासिनि ॥
भगवत्-तत्त्व-रहस्य-प्रकाशिनि ।परम ज्योति परमात्मज्ञान की ॥


॥ आरती अतिपावन पुरान की… ॥

परमहंस-मुनि-मन उल्लासिनि ।रसिक-हृदय-रस-रासविलासिनि ॥
भुक्ति-मुक्ति-रति-प्रेम सुदासिनि ।कथा अकिंचन प्रिय सुजान की ॥

॥ आरती अतिपावन पुरान की… ॥

।।इति श्री भागवत पुराण जी की आरती समाप्त।।

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