श्री श्री परमहंस योगानन्द की जीवनी

Paramhansa Yogananda

परमहंस योगानंद एक ऐसे संत महात्मा थे जो ईश्वर से बातचीत किया करते थे । दोस्तों इस धरती पर ख़ास कर इस भारत भूमी पर प्राचीन समय से ही ऐसे पैगम्बर और अवतार आते रहे है । जो ईश्वर के साथ एक हो चुके है । और वे मानव हित के लिए इस धरती पर अर्थात् इस मृत्यु लोक में आते है । या वे अवतरित होते है । ऐसे ही अनेको संतो में से एक थे विश्व विख्यात आध्यात्मिक पुस्तक योगी कथा मृत के रचयिता संत परमहंस योगानंद जिन्होंने पूरे विश्व में योग की क्रांति का संचार किया ।

परमहंस योगानंद जी का जन्म
परमहंस योगानंद जी का जन्म 5 जनवरी 1893 को गोरखपुर के एक बंगाली परिवार में हुआ था । उनका वास्तविक नाम मुकुंद लाल घोस था । परमहंस योगानन्द जी के माता पिता लाहड़ी महाशय के शिष्य थे । जो की एक महान क्रिया योगी थे । और अमर गुरु महा अवतार बाबा जी के शिष्य थे । इसलिए उनके माता पिता आशीर्वाद लेने के लिए नन्हे मुकुंद को लेकर , लाहड़ी महाशय के पास बनारस गए । मुकुंद अर्थात् योगानंद को देखकर लाहड़ी महाशय ने परमहंस जी की माता श्री से कहा की तुम्हारा पुत्र एक योगी होगा । जो एक आध्यात्मिक इंजन की तरह विश्व के हजारों आत्माओ को ईश्वर की तरफ ले जायगा । दोस्तों ईश्वर को जानने और खोजने की प्रबल लालसा योगानन्द जी के मन में बचपन से ही थी । इसी के लिए एक बार बो अपने एक मित्र के साथ घर से भी भाग गए । और गुरु की खोज में हिमालय की ओर चल दिए । ईश्वर से बातचीत के कई किस्से उन्होंने अपनी पुस्तकों में लिखे है । ऐसा ही एक किस्सा उनके बचपन का है । जब वह मात्र 6 बर्ष के थे , एवं बो बताते है की बो ध्यान में बेठे , और आँखों को बंद कर लिया और यह सोचने लगे की आखिर इन बंद आँखों के अँधेरे के पीछे क्या है ?

काफी देर इसी अवस्था में रहने के बाद श्री परमहंस योगानंद जी को एक चमकीला प्रकाश दिखाई दिया। और हिमालय के बहुत सारे साधु-संतो की आक्रतिया दिखने लगी । मुकुंद ने उस प्रकाश को देखकर मन -ही-मन प्रश्न किया , की यह कैसा प्रकाश है ? तब एक गरजती हुई आवाज ने उत्तर दिया की , में ईश्वर हु ! ईश्वर के होने का उन्हें यह पहला अनुभव प्राप्त हुआ था। जिससे ईश्वर को और करीब से जानने की इच्छा उनके मन में और गहराई करती गयी । ईश्वर को प्राप्त करने की इसी लालसा के कारण वे बाल्य काल से ही अनेक संतो के पास जाकर ईश्वर को जानने के मार्गो के बिषय में समझने की कोशिस करते और उनसे ईश्वर के अनुभवों के बिषय में पूछते । उनके भीतर ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा और भक्ति की भावना थी । वो मानते थे की अगर ईश्वर में ऐसी अटूट निष्ठा और श्राद्धा हो तो आप अपना हर कार्य ईश्वर की मदद से पूरा कर सकते है । इसी श्रद्धा के जरिये आप ईश्वर से हर प्रश्न का उत्तर भी प्राप्त कर सकते है । और उनसे वार्तालाप भी कर सकते है । इस श्रध्दा के कई उदाहरणों अपनी पुस्तक योगीकथा मृत में देते है । जिसमे से कुछ किस्से, में आप सभी के साथ साझा करना चाहूँगा ।

योगानंद जी के जीवन के किस्से एवं ईश्वर में विश्वास की कहानियाँ

पहली कहानी
एक बार की बात है ,कि योगानंद जी बचपन में एक बार अपनी बहन के साथ छत पर पतंगों को उड़ता हुआ देख रहे थे । उन्होंने प्रार्थना की, कि एक पतंग उन्हें भी मिल जाये । और जल्दी ही उडती हुई एक पतंग कटकर उनकी छत पर आकर गिर गयी । तब उनकी बहन ने उनसे कहा की अगर दोवारा भी एसा हुआ तो में मान लूंगी तुम्हारी प्रार्थना में शक्ति है । और तुम्हारी बात ईश्वर मान लेते है । योगानंद जी ने फिर से प्रार्थना की और जल्द ही एक और पतंग उनकी छत पर आकर गिर गयी । यह सब देख उनकी बहिन छत से भाग आई । और आकर माँ से कहा ‘ मुकुंद ‘ तो जादूगर हो गया है । ईश्वर मुकुंद की बात सुनते है । माँ भी अत्यंत आश्चर्यचकित थी । ऐसे ही दूसरी कहानी इस प्रकार है ।

दूसरी कहानी
जब योगानंद जी के बड़े भाई ने उन्हें समझाने की कोशिश की, कि वो सन्यास आदि के चक्कर में अपना जीवन बर्बाद कर रहे है । तब उन्होंने अपने अपने भाई से कहा कि वो ईश्वर में अडिग आस्था रखते है । उनके भाई ने फिर कहा की तुम्हारे जीवन में कोई बड़ी विप्पत्ति नहीं आई । इसलिए तुम बड़ी-बड़ी बाते कर पा रहे हो । लेकिन दोस्तों श्री परमहंस योगानंद जी अपने बड़े भाई की बातो से बिल्कुल भी प्रभावित नहीं हुए । तब उनके बड़े भाई अनंत ने, योगानंद जी के विश्वास को परखने के लिए एक शर्त रखी जिसके गवाह योगानंद जी के मित्र जीतेन्द्र बने । श्री परमहंस योगानंद जी, के भाई अनंत ने शर्त रखी की यदि योगानंद , वृन्दावन शहर का भ्रमण करके बिना किसी पैसों और बिना किसी से मदद लिए भोजन पानी करके वापस आ जाए, तो अनंत ( भाई ) स्वयं योगानंद जी से दीक्षा प्राप्त कर लेंगे । और उन्हें सन्यास लेने से कभी नहीं रोकेंगे ।

दोस्तों योगानंद जी ने शर्त स्वीकार कर ली । अनंत ने, योगानंद और उनके मित्र जीतेंद्र को एक तरफ यानी वृंदावन पहुचने के लिए टिकेट खरीद कर दे दी । साथ ही यह भी परिक्षण कर लिया की कही उनके पास छुपाये हुए , ज्यादा पैसे न हो , और फिर वे ट्रेन में दोनों मित्र बैठ गए । लेकिन जब यात्रा समाप्त होने बाली थी , उससे एक स्टेशन पहले दो नये यात्री उनके समक्ष आकर बैठ गए । और जल्द ही उनमे बातचीत होने लगी । थोड़ी देर बाद उन दो यात्रियों ने , योगानंद और जीतेंद्र से कहा महाशय आप दोनों भगवान श्री कृष्ण के प्रेम में घर छोड़कर निकले हुए युवक लगते है । आप कृपा करके हमारा आदित्य स्वीकार करें । और वृन्दावन हमारे साथ में चलें । योगानंद जी ने उनका आदित्य ( प्रस्ताव ) स्वीकार किया । और दोनों ट्रेन से उतरने के बाद वो उन्हें एक आश्रम में ले गये । जहाँ एक गोरी नाम की साध्वी से उनकी भेंट ( मुलाक़ात ) हुई । इसके बाद गोरी माँ ने योगानंद और जीतेंद्र को भोजन करवाया । योगानन्द जी लिखते है , कि यह एक पूर्ण राजसी भोजन था ।

ऐसा भोजन हमने पहले कभी नहीं किया। भोजन करने के पश्चात दोनों मित्रों ने आश्रम से विदाई ली। आश्रम से निकलने के पश्चात वह एक पेड़ के नीचे बैठ गए , क्योंकि धूप बहुत तेज थी, तब जीतेंद्र ने कहा, कि भाग्य से हमें भोजन तो मिल गया । लेकिन बिना पैसे के हम वृंदावन की यात्रा कैसे करेंगे । उत्तर देते हुए योगानंद जी ने कहा कि पेट भरते ही तुम ईश्वर को भूल गए। ईश्वर हमारी सहायता अवश्य करेंगे। दोनों मित्र आपस में बातें कर ही रहे थे, कि तभी एक बग्गी आकर उनके पास रुकी। बग्गी चालक ने कहा कि महाशय मैं आप दोनों को वृंदावन की यात्रा कर सकता हूं ? योगानंद जी ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया । तब फिर बग्गी चालक ने कहा कि कल रात में मेरे स्वप्न में श्री कृष्ण आए थे तथा उनने कहा कि दो युवक वृंदावन के दर्शन के लिए जा रहे हैं । तुम उन दोनों को जाकर दर्शन कराओ, साथ ही उस व्यक्ति ने यह भी बताया कि मैं ध्यान में निरंतर आपका चेहरा देखता रहता हूं । और आप मेरे पूर्व जन्मों के गुरु हैं। तब योगानंद जी उस व्यक्ति के साथ चलने के लिए तैयार हो गए उस व्यक्ति ने उन्हें वृंदावन का दर्शन कराया और मिठाइयां खरीद कर दी और साथ ही साथ वापसी यात्रा के लिए टिकट भी खरीद कर दिया । वृंदावन छोड़ने से पहले योगानंद जी ने उस व्यक्ति को क्रियायोग में दीक्षित भी किया । इसके बाद वे अपने मित्र जितेंद्र के साथ वापस अपने भाई के घर आगरा आ गए । जीतेंद्र ने सारी बात बड़े भाई को बताई जिससे वे ना केवल अचंभित हुए बल्कि आध्यात्मिक रूप से बहुत प्रभावित भी हुए। उन्होंने बड़ा भाई होते हुए भी योगानंद जी से क्रिया योग की दीक्षा ली।


परमहंस योगानंद जी की मृत्यु
परमहंस योगानंद जी की मृत्यु का किस्सा सबसे अलग और आश्चर्यचकित है । परमहंस योगानंद जी एक धार्मिक गुरु एवं नेक आदमी थे । परमहंस योगानंद जी ने क्रियायोग पर बड़ी रिसर्च की, इसलिए परमहंस योगानंद जी को अपनी मौत का पहले ही अनुमान लग गया था । समय 7 मार्च 1952 की शाम जब अमेरिका में भारत के राजदूत, बिनय रंजन सपत्नीक, लॉस एंजिल्स के होटल में खाने पर आये थे । जिसमें उनके साथ परमहंस योगानंद जी भी थे । भोजन के बाद परमहंस योगानंद जी की भाषण था । दुनिया की एकता पर, योगानंद जी अपना भाषण दे रहे थे । योगानंद जी ने आखिरी में अपनी कविता की कुछ लाइने कहीं , जिनमें अपने देश भारत की महिमा की सुख सुविधा का वखान था , कुछ समय पच्यात योगानंद जी की आंखें आसमान की ओर और देह नीचे फर्श पर गिर गया । और श्री श्री योगानंद जी समाधी में विलीन हो गए ।

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