गुरु गोविंद सिंह जी की जीवनी

Guru Gobind Singh JI

गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन परिचय

श्री गुरु गोविन्द सिंह जी का जन्म 22 अक्टूबर , सन 1666 ई. को पटना में हुआ था । परन्तु इनकी जयंती नानकशाही कैलेंडर के अनुसार मनाई जाती है । गुरु गोविंद सिंह जी के बचपन का नाम गोविन्द राय था । गुरु गोविंद सिंह जी के पिता जी का नाम श्री तेग बहादुर सिंह जी था श्री तेग बहादुर सिंह जी सिखों के नोवें गुरु थे । तथा गुरु गोविंद सिंह जी की माता श्री का नाम गुजरी जी था ।

गोविन्द राय बचपन से ही स्वाभिमानी और शूरवीर स्वाभाव के थे। गुरु गोविंद सिंह जी की प्रमुख विशेषता घुड़सवारी करना, हथियार चलाना, साथियों की दो टोली बनाकर युद्ध करना आदि तथा यह मार्शल आर्ट में भी निपुर्ण थे । श्री गुरु जी अपने जीवन में खेलों को भी अधिक महत्व देते थे । गुरु जी खेल भी खेला करते थे ।

सन 1672 में गुरु गोविन्द सिंह का परिवार आनंदपुर में आया, यहाँ उन्होंने अपनी शिक्षा ली। यहाँ पर उन्होंने पंजाबी, संस्कृत, और फारसी की शिक्षा प्राप्त की । 11 नवम्बर सन 1675 को कश्मीरी पंडितो को जबरदस्ती मुस्लिम धर्म अपनाने के विरोध करने पर ओरंगजेब ने दिल्ली के चांदनी चौक पर गुरु तेगबहादुर सिंह का सर कटवा दिया । अपने पिता की मृत्यु के बाद 29 मार्च सन 1676 को वैशाखी के दिन गुरु गोविन्द सिंह को सिख धर्म का 10वा गुरु बनाया । तथा गुरु गोबिंद सिंह जी के चार बेटों थे। तथा चारो बेटो को साहिबज़ादे के रूप में जाना जाता है, चारों भाइयों ने क्रूर मुगल शासकों और आक्रमणकारियों के समक्ष अपनी सिख पहचान को बनाए रखने के लिए युद्ध करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया । श्री गुरु गोबिंद सिंह के दो बड़े बेटे, अजीत सिंह और जुझार सिंह, ने चामकौर में युद्ध करते हुए बलिदान की प्राप्ति की। उनके दोनों छोटे पुत्रो का नाम छोटा पुत्र जोरावर सिंह और फतह सिंह थे। परन्तु अंत में इन्होने भी संघर्स करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।

गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती 2022

साल 2022 में गुरु गोविंद सिंह जी की जयंती 9 जनवरी, 2022 को मनाई जायगी । इस दिन सभी लोग बहुत खुश एवं प्रफुल्लित रहते है । सिख समुदाय ने गुरु गोविंद सिंह जी के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने दिया । आज भी प्रत्येक वर्ष गुरु जी का जन्मदिवस बहुत धूम धाम से मनाते है । गुरु गोविंद सिंह जी ने सभी मनुष्यों के कल्याण हेतु कई कविताओ को प्रलक्षित किया है । गोबिंद सिंह ने प्रेरणा, भक्ति, अवज्ञा, वीरता और एक ईश्वर में विश्वास जैसे महान गुणों के साथ गहरी कविताएँ लिखीं। गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने अनुयायियों से बुराई और अत्याचार के विरुध लड़ने और हमेशा सही कार्रवाई का रास्ता चुनने और धर्मियों का समर्थन करने को कहा। नश्वर संसार से विदा होने से पहले, गुरु ने पवित्र गुरु ग्रंथ को सिखों के स्थायी गुरु के रूप में स्थापित किया । इस प्रकार आज भी श्री गुरु गोविंद सिंह हमारे मन-मस्तिष्क में मार्गदर्शक की भांति विद्दमान है ।

सिखों के 10 वे गुरु

गुरु गोविंद सिंह के पिता श्री तेग बहादुर सिंह जी की मृत्यु के बाद, श्री गुरु गोविंद सिंह जी को ही सिखों के दसवें बनाया गया । जब कश्मीर में रहने बाले पंडितों को मुग़ल शासक जबरदस्ती इस्लाम को स्वीकार करने के लिए अपने पेरों पर मजबूर कर रहा था , तो यह दशा श्री गुरु तेग बहादुर सिंह जी देखा नहीं गया और उन्होंने इसका डटकर विरोध किया और हिंदुओं समाज की रक्षा करने का प्रण लिया । श्री तेग बहादुर सिंह को भी मुग़ल शासक ने इस्लाम कबुल करवाने के लिए कहा परन्तु तेग बहादुर बहुत वीर थे उन्होंने डटकर इस कु-अपराध का विरोध किया । परन्तु मुग़ल शासक के पास अधिक सेना होने के कारण बहादुर सिंह को घेर लिया और चांदनी चौक विस्तार में भारत के राजा, औरंगजेब नेतेग बहादुर सिंह जी का सिर काट दिया। गया इस घटना के बाद, उनके बेटे गुरु गोबिंद सिंह को सिखों के दसवें गुरु के रूप में नियुक्त किया गया था। यक़ीनन आज भी तेग बहादुर सिंह हमारे दिलों में विद्दमान है ।

खालसा पन्त का निर्माण

गुरु गोविंद सिंह जी की संघर्स यात्रा यही नहीं रुकी, अपितु , गुरु गोबिंद सिंह जी के नेतृत्व में सिख समाज के इतिहास में बहुत सारे नए बदलाब आये । गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा का निर्माण किया जो सन 1699 से प्रति बर्ष बैसाखी के दिन विधिवत रूप से मनाया जाता है। खालसा का अर्थ है की सिख धर्म क अनुयायियों को एक सामूहिक रूप में जोड़ना ।खालसा ग्रन्थ का तात्पर्य आध्यात्मिकता और आशावाद से है , जहाँ कोई भी व्यक्ति पाखंड में न उलझे सभी ईश्वर की भक्ति करे । खालसा अर्थात संप्रभु या स्वतंत्र, अनुयायियों को यह सिखाने के लिए गठित किया गया था कि कोई भी अनुष्ठान या अंधविश्वास सर्वशक्तिमान से ऊपर नहीं है। खालसा शब्द का अर्थ है पवित्रता। केवल मन, वचन और कर्म से समाज सेवा के लिए प्रतिबद्ध व्यक्ति स्वयं को खालसापंथी कह सकता है। अतः गुरु गोबिंद सिंह ने वर्ष 1699 में खालसा पंथ की स्थापना की।


गुरु गोविंद सिंह के वचन या नारा

गुरु गोविंद सिंह जी का कहना था की, “ वाहेगुरु जी दा खालसा वाहेगुरु जी दी फतेह ”

गुरु गोविंद सिंह जी पूर्ण रूपेण शाकाहारी मानव थे । वे किसी भी हालत में किसी भी पक्षी , जानवर ,मनुष्य , मास मदिरा का सेवन नहीं करते थे । उनके द्वारा कही गयी बाते इस प्रकार है ,

  1. अपने सर के बाल कभी न काटे , उन्हें लम्बे और बड़े ही रहने दे।
  2. अपने बालो में लकड़ी से बने कंघा (कंघी) का ही उपयोग करे जिससे स्वच्छता बनी रहे।
  3. हाथ में स्टील का कड़ा पहने , तथा किसी भी अन्धविशवास बाले धागे को ग्रहण न करे।
  4. पायजामा या घुटने की लंबाई के अंडरवियर को ही धारण करे।
  5. हथियार के रूप में केवल कृपाण को ही रखे ।
  6. सदेव सत्य का ही साथ दे।

गुरु गोविन्द सिंह जी की मृत्य
नांदेड में मुल खान नाम का एक पठान , जिसकी गुरु गोविंद सिंह जी से पुरानी शत्रुता थी। एक दिन उसने छुरे से गुरु जी पर हमला कर दिया । गुरु जी ने कृपाण के एक वार से उसे सदा की नींद सुला दिया । गुरु जी का घाव ज्यादा होने के कारण गुरु जी 07 अक्टूबर, 1708 ई. को ज्योति- जोत समा गए ।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें