दुर्गा सूक्तम्

Durga Mata

दुर्गा सूक्तम देवी दुर्गा की पूजा करने वाले सात छंदों का एक वैदिक भजन है। यह महानारायण उपनिषद में प्रकट होता है। सात में से चार श्लोक अग्नि के देवता को संबोधित करते प्रतीत होते हैं और वे ऋग्वेद में भी दिखाई देते हैं। दुर्गा सूक्तम का नियमित जप आपको उच्च स्तर की चेतना प्राप्त करने और चेतना और ऊर्जा को फिर से भरने में मदद करेगा।

जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो निदहाति वेदः ।
 नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः ॥१॥

तामग्निवर्णां तपसा ज्वलन्तीं वैरोचनीं कर्मफलेषु जुष्टाम् ।
दुर्गां देवीँशरणमहं प्रपद्ये सुतरसि तरसे नमः ॥२॥

अग्ने त्वं पारया नव्यो अस्मान् स्वस्तिभिरति दुर्गाणि विश्वा ।
पूश्च पृथ्वी बहुला  उर्वी भवा तोकाय तनयाय शंयोः ॥३॥

विश्वानि नो दुर्गहा जातवेदः सिन्धुं  नावा दुरितातिपर्षि ।
अग्ने अत्रिवन्मनसा गृणानोऽस्माकं बोध्यविता तनूनाम् ॥४॥

पृतनाजितँसहमानमुग्रमग्निँ हुवेम परमात्सधस्थात् ।
 नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा क्षामद्देवो अति दुरितात्यग्निः ॥५॥


प्रत्नोषि कमीड्यो अध्वरेषु सनाच्च होता नव्यश्च सत्सि ।
स्वां चाग्ने तनुवं पिप्रयस्वास्मभ्यं  सौभगमायजस्व ॥६॥

गोभिर्जुष्टमयुजो निषिक्तं तवेन्द्र विष्णोरनुसंचरेम ।
नाकस्य पृष्ठमभि संवसानो वैष्णवीं लोक इह मादयन्ताम् ॥७॥

 कात्यायनाय विद्महे कन्याकुमारि धीमहि
तन्नो दुर्गिः प्रचोदयात् ॥

॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

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